इस किताब की रचना मुनि विजयकुमार द्वारा की गयी है।
यह कहना उचित होगा कि हर एक पाठक अपनी हर किताब का चयन कहीं न कहीं उसका पृष्ट देखकर या फिर उस किताब का अंत में लिखे सारांश को पढ़कर ही करते हैं। कुछ वैसे ही मेरे लिए इस किताब का चयन करने कि प्रक्रिया में सहायता दायक थी इस किताब के पहले पन्ने पे छपी एक कविता, जिसकी प्रस्तुती कुछ ऐसी है:
सफलता रहती थी,
जिनके सदा साथ,
वरदानस्वरूप होता था,
जिनका ऊपर उठा हाथ,
विजय गीत गा रही है,
दशों दिशाएं,
सदियों तक गूंजती रहेगी,
जिनके कर्तृत्व की गाथाएं,
हृदय की हर धड़कन में,
थिरकता है जिनका प्यारा नाम,
धर्म संघ को दिये जिन्होने,
नित नये आयाम,
परोक्ष रूप में प्राप्त है,
आज भी जिनका सुखद साया,
चूहे-बिल्ली के तेरापंथ को
सात समन्दर पार पहुंचाया,
हर थका हारा प्यासा व्यक्ति,
जिनके दरबार में पहुंच कर,
हो जाता था प्रमुदित,
मानवता के महासूर्य,
गुरुदेव श्री तुलसी के पावन चरणों में,
‘सफलता के सोपान’ करता हूँ समर्पित ॥
जहाँ इस कविता के माध्यम से लेखक अपनी रचना अर्थात इस किताब को अपने गुरु श्री तुलसी जी को समर्पित कर रहे हैं, वहीँ उन्होंने अपनी कविता के व्याख्यान में एक सफल व्यक्ति कि इतनी सुनहरी छवि प्रस्तुत की है, कि कहीं का कहीं मेरी इच्छा हुई यह ज्ञात करने की मुनि विजयकुमार द्वारा निर्मित एक सफल व्यक्ति कि विशेषताएँ के पीछे का मनषय और कारण क्या था।
इसी के साथ मेरे दिमाग में दूसरा सवाल यह था, कि हमारी दुनिया में अनेकांतवाद के चलते, सफलता शब्द की इतनी सारी परिभाषाएं हैं कि मेरे लिए उन में किसी एक को सही कहकर उसका चयन करना बहुत मुश्किल प्रतीत होता था। साथ ही हमारी तेज़ रफ़्तार ज़िन्दिगियों में सफलता को लुत्फ़ उठाना भी हम भूल जाते हैं। सफलता को एक ऐसे फल कि तरह देखा जाना लगा है जिसको ज़िन्दगी भर ढूंढा जाता है इस सोच से कि कहीं बुढ़ापे में जाकर या फिर एक अधिकांश समय बीत जाने का बाद उस फल कि मिठास चखी जाएगी और तब तक उस फल कि केवल चेष्टा ही कि जा सकती है।
यहाँ तक कि सफलता की आकांक्षा हर चिन्तनशील व्यक्ति में पायी जाती है। कौन कितना जीता है, इससे ज्यादा महत्त्वपूर्ण है – कौन, कैसा जीवन जीता है । लम्बे जीवन की अपेक्षा कहीं कहीं सफलतापूर्वक स्वल्पकालीन जीवन ज्यादा उपयोगी हो सकता है। सफलता का वरण करने वाला जहां स्वयं में एक अनिर्वचनीय तृप्ति का अनुभव करता है, वहां औरों के लिए भी एक मूर्तिमान उदाहरण बन जाता है ।
इस किताब की सरंचना एक कथाओं की समहूती के रूप की गयी है। सारांश में यदि कहें तो यह किताब ऐसी १२ कहानियों से संचित है जिनसे पाठक को यह एहसास और आभास हो पाए कि सफलता का असली अर्थ क्या है। प्रस्तुत पुस्तक में कहानियों के माध्यम से सफलता के साधक-बाधक तत्त्वों का प्रतिपादन किया गया है। इन कहानियों को सफलता के सोपान मानकर यदि कोई आगे बढ़े तो निश्चित ही वह अपनी अभिलषित मंजिल को प्राप्त कर सकता है ।
Feel free to post your queries, reviews and thoughts to us by writing to us at email@anadiananth.com or by filing out the form provided in the Contact Us page.
Phone No.: 8286000868
Address: 17/2 & 3, Parvati Niwas, Juhu Village, First Floor, Sector – 11, Vashi, Navi Mumbai – 400703 Above Global Pharmacy Shop Near Main Entrance Gate and Opp Shiv Sena Shaka Near Vinamra Swaraj Hospital
@Website Owned by Adv. Lalit K Jain
@ All intellectual Property Rights and Copyright of this Website is Owned by Adv. Lalit K Jain